ब्यूरो, दैनिक हिमाचल न्यूज:- भारत प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों का जनक रहा है, और इनमें जड़ी-बूटी चिकित्सा का विशेष महत्व है। रामायण में वर्णित संजीवनी बूटी से लेकर आधुनिक आयुर्वेद तक, हिमाचल प्रदेश जड़ी-बूटियों का एक बड़ा भंडार रखता है। प्राकृतिक चिकित्सक व सेवा निवृत्त प्रवक्ता भौतिक शास्त्र राकेश शर्मा का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में औषधीय पौधों का उत्पादन और सौर ऊर्जा का सही उपयोग प्रदेश की आर्थिकी और स्वरोजगार के लिए वरदान साबित हो सकता है।

उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में 3500 से अधिक औषधीय पौधों की प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 100 से अधिक शिवालिक पहाड़ियों में उगती हैं। इनमें सुगंधित पौधों की कई प्रजातियां भी शामिल हैं। हिमाचल प्रदेश से आतिश, सतनपांजा, धूप, कुटकी, बनाखरी, इहोरा, दारूहल्दी, तालिश पत्रा, रिबांड चीनी, बक, शोमलता आदि औषधीय पौधे देश-विदेश में निर्यात किए जाते हैं। इसके अलावा, कुछ चुनिंदा फसलें जैसे कुठ, कलजीरा, केसर और होप विशेष रूप से लाहौल-स्पीति और किन्नौर में उगाई जाती हैं।

राकेश शर्मा ने बताया कि हिमाचल में 179 प्रजातियों से दवाई, 32 प्रजातियों से तेल, 16 से धूप और 40 से प्राकृतिक रंग बनाए जाते हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि लगभग 47 प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर हैं और 11 प्रजातियां पहले ही खत्म हो चुकी हैं। प्रदेश का यशवंत सिंह परमार बागवानी विश्वविद्यालय नौणी इस दिशा में अच्छा कार्य कर रहा है, लेकिन लुप्तप्राय पौधों के संरक्षण के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि हिमाचल में सौर ऊर्जा का अपार संभावनाएं हैं। यह न केवल पर्यावरण के अनुकूल और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है, बल्कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने में भी मदद करता है। लोग अपने घरों या व्यवसायिक स्थलों पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाकर न केवल अपनी बिजली की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं, बल्कि अतिरिक्त बिजली बेचकर आय भी अर्जित कर सकते हैं। यह तकनीक ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई और दूरस्थ गांवों में बिजली पहुंचाने का किफायती और सुलभ तरीका भी है।
राकेश शर्मा का मानना है कि अगर औषधीय पौधों और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में उचित जागरूकता और योजनाएं चलाई जाएं, तो यह प्रदेश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और स्वरोजगार को मजबूती प्रदान कर सकता है।



