ब्यूरो, दैनिक हिमाचल न्यूज: दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा सामुदायिक भवन, अर्की में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के पंचम दिवस पर प्रेम गुप्ता और आकाश गुप्ता (लक्ष्य स्कूल्स) ने परिवार सहित पूजन किया। कथा वाचन करते हुए साध्वी भाग्यश्री भारती जी ने बताया कि जब ईश्वर इस धरती पर अवतार धारण करता है, तो उसकी क्रियाओं को ‘लीला’ शब्द से संबोधित किया जाता है। लीला का अर्थ है दिव्य खेल, दिव्य क्रीड़ा। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने अवतरण काल में अनेकों दिव्य लीलाएं कीं। ब्रज की कुंज गलियां, कंस के अत्याचारों से पीड़ित मथुरा भूमि, और कुरुक्षेत्र का महासमरांगण, हर क्षेत्र में उनकी अलौकिक लीलाओं का प्रकाश जगमगाया।
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साध्वी जी ने बताया कि ये दिव्य क्रीड़ाएं उस समय सप्रयोजन थीं और आज युगों के बाद भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। साधारण प्रतीत होते हुए भी ये असाधारण संदेशों की वाहक हैं। एक-एक लीला में गूढ़ आध्यात्मिक रहस्य संजोया गया है। जैसे ग्वालिनों की मटकी से माखन चुराकर खाना। नटखट कान्हा अपनी ग्वाल बालों की टोली के संग किसी भी ग्वालिन के घर में चोरी छिपे प्रवेश कर जाते थे। अवसर पाते ही माखन की मटकी छींके से उतार लाते और फिर सब सखाओं के संग खूब छककर माखन खाते।
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नन्दनंदन माखन चोर की यह लीला अत्यंत सांकेतिक है। यह इशारा करती है कि संसार द्वैतात्मक है। इसमें माखन रूपी साथ एवं छाछ रूपी अंसार दोनों ही विद्यमान हैं। माखन चुराकर प्रभु यही समझा रहे हैं कि इस संसार में परम साथ तत्व अर्थात ईश्वर का वरण करें, सारहीन माया का नहीं। इसी प्रकार कंकड़ मारकर मटकी फोड़ना, मनमोहनी बांसुरी की तान छेड़ना आदि सभी लीलाएं अत्यंत प्रेरणात्मक और दिव्य हैं। किंतु वर्तमान में इन कृष्ण लीलाओं के संदर्भ में अनेकों भ्रांतियां फैली हुई हैं।
आज का बुद्धिजीवी वर्ग इन पारलौकिक लीलाओं को अपनी संकीर्ण लौकिक बुद्धि के तराजू में तोलने की चेष्टा कर रहा है। परिणामस्वरूप वह इन दिव्य लीलाओं पर ऊल-जुलूल प्रश्नचिन्ह लगा बैठता है। इसलिए भगवान की लीलाओं को अपनी बुद्धि से समझने का प्रयास नहीं करना चाहिए, क्योंकि ईश्वर मन, बुद्धि और वाणी से परे का विषय है। उसे केवल ज्ञान द्वारा ही समझा जा सकता है।
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इस दौरान थाना प्रभारी अर्की गोपाल सिंह, समाजसेवी हेमन्त शर्मा, एडवोकेट नरेन्द्र कुमार, एडवोकेट पार्वती, जयदेवी और निर्जला गुप्ता ने मंगल आरती में हिस्सा लिया। साध्वी ज्योति भारती, साध्वी भगवती भारती, साध्वी संदीप भारती और साध्वी पुण्या भारती ने सुमधुर भजनों का गायन किया।
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