ब्यूरो, दैनिक हिमाचल न्यूज – मध्यप्रदेश के इंदौर जिले के महू छावनी में स्थित इन्फैंट्री म्यूज़ियम के करगिल युद्ध अनुभाग में जब कारगिल शहीद कैप्टन विजयंत थापर की माता त्रिप्ता थापर पहुंचीं, तो उनकी आंखों में गर्व और पीड़ा के मिले-जुले भाव थे। यह सिर्फ एक साधारण दौरा नहीं था, बल्कि उनके लिए एक तीर्थयात्रा थी, जहां वह अपने शहीद बेटे कैप्टन विजयंत थापर को श्रद्धांजलि देने आई थीं।

कैप्टन विजयंत थापर (26 दिसंबर 1976 – 29 जून 1999), 2 राजपूताना राइफल्स के वीर अधिकारी थे, जिन्होंने कारगिल युद्ध (ड्रास सेक्टर) में तोलोलिंग और नोल की लड़ाई में अद्भुत शौर्य का परिचय दिया। मात्र 22 वर्ष की आयु में उन्होंने अदम्य साहस और अनुकरणीय वीरता से अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उनकी असाधारण वीरता के लिए उन्हें शहादत के उपरांत वीर चक्र (VrC) से सम्मानित किया गया।

म्यूज़ियम में बेटे की स्मृतियों से भरा अनुभाग उनके लिए एक पवित्र स्थल जैसा था। हर एक वस्तु, दस्तावेज़ और युद्ध से जुड़े विवरण उनके मन में अतीत की यादें ताज़ा कर रहे थे। अपने बेटे की टीम को समर्पित प्रदर्शनी के पास वह कुछ पल ठहरीं, उंगलियों से उन शब्दों को छूते हुए जो उनके पुत्र की वीरता और राष्ट्र के प्रति अटूट समर्पण को दर्शाते थे।

इस भावनात्मक यात्रा में त्रिप्ता के साथ उनकी पुरानी मित्र और शिक्षाविद पूनम सैनी भी मौजूद थीं। पूनम ने चुपचाप उनका साथ निभाया, इस यात्रा के महत्व को समझते हुए हर कदम पर उन्हें भावनात्मक संबल दिया। दोनों मित्र म्यूज़ियम में करगिल युद्ध की यादों को साझा करते हुए, उन वीर सैनिकों की असाधारण कुर्बानियों पर विचार कर रही थीं।
त्रिप्ता थापर के अनुसार, “यह संग्रहालय सिर्फ युद्ध की गाथाओं का प्रतीक नहीं, बल्कि एक माँ के अटूट प्रेम और पूरे देश की कृतज्ञता का प्रतीक है। यहाँ की निस्तब्धता में भी माँ के दिल की आवाज़ गूंज रही थी – एक ऐसा दिल जो प्रेम, पीड़ा और गर्व से भरा हुआ था।”
“वीर भोग्या वसुन्धरा” – धरती उन्हीं को प्राप्त होती है जो वीर होते हैं। कैप्टन विजयंत थापर का सर्वोच्च बलिदान हमेशा भारतीय सेना और देशवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा। (साभार: टाइम्स ऑफ इंडिया)



