ब्यूरो, दैनिक हिमाचल न्यूज:- सोलन जिला के अंतर्गत पट्टाबरावरी पंचायत के शीतला माता मंदिर के समीप श्री बांके बिहारी निर्माणाधीन मंदिर में पिछले पांच दिनों से चल रही श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन की कथा में प्रसिद्ध आचार्य विश्वमंगलम सेवाधाम के प्रमुख संस्थापक श्रीहरिजी महाराज अपनी मधुरवाणी से ज्ञान की अमृत वर्षा कर रहे हैं। उन्होंने नवरात्रे के छठे दिन शनिवार को कात्यानी माता के रूप की विशेषता विस्तारपूर्वक अपने प्रसंग में श्रोताओं को श्रवण करवाया।
इस दौरान आचार्य ने माता दुर्गा के विभिन्न रूपों के बारे में उपस्थित भक्तजनों को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि नवरात्र के सातवें दिन माता दुर्गा की पूजा कालरात्रि के रूप में की जाती है। इसे काल को नष्ट करने वाली मां दुर्गा भी कहा जाता है। आचार्य ने कहा कि पूर्वकाल में महिषासुर अपनी तपस्या के बल पर देवताओं से अनेक प्रकार से वरदान प्राप्त करके बहुत ही बलशाली हो गया था। उनकी शक्ति का कोई परावार नहीं था। उसके पास अनेकों दिव्य अस्त्र शस्त्र और बहुत बड़ी दैत्य सेना थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार वह अजेय बन गया था और उसने अपना साम्राज्य स्वर्गलोक व इंद्रलोक तक फैला लिया था।
आचार्य ने बताया कि देवताओं और असुरों के बीच सौ साल तक संग्राम हुआ,लेकिन देवता लोक इसमें हार गए। देवताओं को जीत कर महिषासुर ने देवलोक पर कब्जा कर लिया और स्वयं को इंद्रदेव घोषित कर दिया। सभी देवता, देवराज इंद्र के साथ भगवान बह्मा जी के पास गए और अपनी व्यथा बताई। इसके बाद सभी देवता भगवान शिव और भगवान विष्णु से मिले। इसके बाद महिषासुर का संहार किया। श्री हरिजी महाराज ने अगले प्रसंग में कहा कि रूकमणी माता कई रूपों में प्रकट हुई और रूकमणी माता नारायण का ही वर्णन करती है।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति बिना नारायण के लक्ष्मी को पाना चाहा उसे दुख ही मिला है। शीशपाल रूकमणी से विवाह करना चाहता था और सारे नगरों और शहरों में विवाह के कार्ड बांटने शुरू कर दिए। रूकमणी ने श्रीकृष्ण जी को खत लिखा कि मेरा भाई मेरी शादी शीशपाल से करवाना चाहता है। यदि मेरी शादी शीशपाल से होती है तो मैं जहर खाकर अपनी जीवन लीला खत्म कर दूंगी।
जब खत को श्रीकृष्ण जी ने पत्र पढऩे के बाद बहुत सोच विचार कर निर्णय लिया और रूकमणी को लेने के लिए रथ पर निकल पड़े।
श्रीकृष्ण ने रूकमणी को अपने रथ पर बिठा कर ले गए और बाद में उनसे विवाह कर लिया। श्री हरिजी महाराज ने श्रीकृष्ण की कई लीलाओं का वर्णन करते हुए कहा कि यमुना नदी में कालिया नाग ने आतंक मचाया हुआ था,जिसके विष युक्त पानी को पीने से मनुष्य और जानवरों की मुत्यु हो जाती थी। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण कालिया नाग का संहार करने के लिए खुद यमुना नदी में उतरे। श्रीकृष्ण ने तीन दिनों तक कालिया नाग से युद्ध किया और यमुना नदी को स्वच्छ बनाया।
श्रीहरिजी महाराज ने कहा कि श्री कृष्ण जी की 16108 रानियां थी,जिसमें रूकमणी को कई रूपों में जाना जाता है। विश्वमंगलम सेवाधाम के मीडिया प्रभारी एवं पूर्व बीडीसी सदस्य डीडी कश्यप ने बताया कि श्री मद्भावगत कथा करवाने का बीड़ा मनाली के समाजसेवी सुरेंद्र सेन ने उठाया है। उन्होंने कहा कि रविवार को श्रीमद्भावगत कथा पूर्णाहुति के साथ संपन्न होगी। अंतिम दिन कथा के प्रवचन का समय दोपहर एक बजे से सांय चार बजे तक का है। इसके बाद भंडारे का प्रशाद भक्तजनों में वितरित किया जाएगा।