दैनिक हिमाचल न्यूज
सन 2002 की कड़ाके की सर्दी की एक रात…
पंजाब के छोटे से गांव ललतों कलां में हर तरफ़ शांति पसरी थी। सर्दियों में रातें जल्दी ढल जाती हैं और उस दौर में मनोरंजन के साधन भी बहुत कम थे। मोबाइल, इंटरनेट, रील्स वगैरह का चलन नहीं था। रात के साढ़े नौ बजे ही गांव मानो सो चुका था।

इसी सन्नाटे के बीच अचानक एक किसान के घर का दरवाज़ा ज़ोर से खटखटाया गया। घर की महिला ने हड़बड़ाकर दरवाज़ा खोला—और सामने जो दृश्य था, उसे देखकर वो कुछ पल के लिए बिल्कुल स्तब्ध रह गई।
दरवाज़े पर किसी और नहीं, बल्कि धर्मेंद्र खड़े थे।

विश्वास करना मुश्किल था कि इतने बड़े अभिनेता उनके छोटे से गांव में, और वह भी रात के समय उनके दरवाज़े पर खड़े हैं। धर्मेंद्र ने विनम्रता से पूछा—
“राम सिंह का घर कहाँ है?

महिला ने पहले उन्हें भीतर आने को कहा, लेकिन उन्होंने विनम्रता से मना करते हुए कहा कि उन्हें तुरंत राम सिंह से मिलना है। वह महिला खुद उन्हें रास्ता दिखाने चल पड़ी।
राम सिंह वही व्यक्ति थे, जिनके घर में कभी धर्मेंद्र अपने परिवार के साथ किराये पर रहा करते थे। उनके पिता केवल कृष्ण देओल उस समय गांव के स्कूल में हेडमास्टर थे। धर्मेंद्र का बचपन इसी गांव में बीता और राम सिंह भी उस समय छोटे बच्चे थे।

जब धर्मेंद्र ने राम सिंह का दरवाज़ा खटखटाया, तो अंदर से उनींदे राम सिंह बाहर आए। लेकिन दरवाज़ा खोलते ही वह भी अवाक रह गए—अपने पुराने परिचित को, अब देश के चहेते सुपरस्टार के रूप में, दशकों बाद अपने घर के बाहर देखकर।
जैसे ही खबर फैली कि धर्मेंद्र गांव पहुँचे हैं, पूरी बस्ती जाग उठी। देखते ही देखते लोग उनके घर के बाहर इकट्ठा हो गए। वह रात पूरे गांव के लिए किसी त्यौहार से कम नहीं थी। दशकों बाद अपने गांव लौटे धर्मेंद्र ने हर मिलने वाले से स्नेह और अपनापन बांटा। वह रात ललतों कलां के लोगों की यादों में हमेशा के लिए दर्ज हो गई।

यह किस्सा धर्मेंद्र ने एक इंटरव्यू में साझा किया था और इससे साफ़ झलकता है कि शोहरत की बुलंदियों पर पहुँचने के बाद भी उन्होंने अपनी जड़ों को कभी नहीं भुलाया।
धरम जी को विनम्र श्रद्धांजलि।
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।
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