ब्यूरो, दैनिक हिमाचल न्यूज:- राजकीय महाविद्यालय अर्की में “समकालीन साहित्य में विविध विमर्श” पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसका संयोजन हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजन तनवर द्वारा किया गया।

डॉ. तनवर ने संगोष्ठी के आयोजन की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य समकालीन साहित्य में उभर रहे विभिन्न विमर्शों को समझना और समाज में हो रहे सांस्कृतिक, सामाजिक, और साहित्यिक परिवर्तनों पर चर्चा करना था। देशभर से आए विद्वानों और शोधार्थियों ने इस मंच पर अपने विचार प्रस्तुत किए।

संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की मुख्य अतिथि केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा की प्रोफेसर अर्पणा सारस्वत थीं। बीज वक्ता के रूप में महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी से प्रोफेसर राजेंद्र सिंह बडगूजर ने विमर्शवादी साहित्य की मौजूदा चुनौतियों और आवश्यकताओं पर अपने विचार साझा किए।

इस संगोष्ठी में समकालीन साहित्य में विविध विमर्शों पर गहन चर्चा हुई, जिनमें प्रमुख रूप से किन्नर विमर्श, दलित विमर्श, स्त्री विमर्श, वृद्ध विमर्श, पर्यावरण विमर्श, और अल्पसंख्यक विमर्श जैसे मुद्दे शामिल थे।
किन्नर विमर्श इस संगोष्ठी का एक विशेष आकर्षण रहा, जिसमें समाजसेवी धनंजय चौहान ने किन्नरों के अधिकारों, उनके संघर्षों और समाज में उनके सशक्तिकरण पर जोर दिया। उनके साथ पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से एलएलएम की पढ़ाई कर चुकी करण किन्नर और मॉडलिंग में पहचान बना चुकी विषीप्रीत किन्नर भी उपस्थित रहीं। धनंजय चौहान ने बताया कि कैसे उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय में किन्नरों के लिए एक सीट आरक्षित करवाने का कार्य किया, ताकि उन्हें भी शिक्षा और रोजगार के समान अवसर मिल सकें। उनकी प्रेरणादायक बातें उपस्थित जनसमूह को गहराई से प्रभावित कर गईं।
इसके अलावा, दलित विमर्श और स्त्री विमर्श पर भी सारगर्भित चर्चाएं हुईं, जिसमें दलित समाज और महिलाओं के प्रति समाज की सोच, उनकी समस्याओं, चुनौतियों और उनके अधिकारों की बात की गई। साथ ही, पर्यावरण विमर्श में वर्तमान समय की पर्यावरणीय चुनौतियों और इनके समाधान पर गंभीर चर्चा की गई।
संगोष्ठी में चार तकनीकी सत्र आयोजित किए गए, जिसमें प्रथम सत्र की अध्यक्षता राजकीय महाविद्यालय राजगढ़ के प्राचार्य डॉ. राजेंद्र वर्मा ने की। इस सत्र में वक्ताओं के रूप में डॉ. अमित धर्म सिंह, डॉ. सत्यनारायण स्नेही, प्रो. वंदना श्रीवास्तव और डॉ. वीरेंद्र सिंह ने अपने विचार व्यक्त किए। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के सह आचार्य डॉ. भवानी सिंह ने की, जिसमें वक्ता के रूप में डॉ. संदीप और डॉ. रघुवीर ने भाग लिया। तृतीय सत्र की अध्यक्षता डॉ. शोभा रानी ने की, जिसमें सेवानिवृत्त प्रो. बलदेव सिंह ठाकुर ने विचार प्रस्तुत किए। चतुर्थ सत्र की अध्यक्षता कर्नाटक के बीवी भूमरड्डी कॉलेज की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. दीपा रागा ने की, जिसमें वक्ताओं के रूप में छत्तीसगढ़ के एसोसिएट प्रो. शिवदयाल पटेल और शिमला के डॉ. संतोष ठाकुर ने अपने विचार साझा किए।
संगोष्ठी के समापन सत्र के मुख्य अतिथि हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक सेवा के अधिकारी और ‘सेतु’ पत्रिका के संपादक डॉ. देवेंद्र कुमार गुप्ता रहे। उन्होंने समकालीन साहित्य में विमर्शों की भूमिका पर चर्चा करते हुए कहा कि यह संगोष्ठी साहित्यिक क्षेत्र में नए विचारों और दृष्टिकोणों को बढ़ावा देने में सहायक साबित होगी। मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. चंद्रकांत सिंह ने विमर्शवादी साहित्य को समझने और इसे सामाजिक संदर्भों में देखने पर जोर दिया।
अंत में, महाविद्यालय की प्राचार्या सुनीता शर्मा ने इस संगोष्ठी की सफलता पर हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि इस तरह के आयोजन विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं को नई दिशा और प्रेरणा प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि यह राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी महाविद्यालय के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगी।
संगोष्ठी के संयोजक डॉ. राजन तनवर ने सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि यह आयोजन विद्यार्थियों और साहित्य प्रेमियों के लिए अत्यंत लाभप्रद रहेगा।





